Thursday 22 August 2013

सातवें आसमां के पार

सातवें आसमां  के पार 
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नीला अम्बर 
उजले चादर में लिपटे बादल 
रस भरी बहती नदियाँ 
शांत वातावरण 
सितारों की दुनिया 
इक खामोश मंज़र 
बेशुमार हंसो की जोड़ियाँ 
हसते ,मुस्कुराते,उछलते,फुदकते 
मोर,चीतल ,बुलबुल 
रंग-बिरंगे गीत गाते तोते और मैना 
संगीत की स्वर लहरी में नहाया 
मेरा पूरा तन-बदन 
मैं -हाँ मैं ……………………………
बना दी गयी थी 
एक रात के लिए 
अप्सरा ,परी ,हूर 
नींद -उफ़ नींद ……………………
जाने क्यूँ उचट गयी कल की रात ?
ले गया था मेरा खुदा 
ले गया था मेरा ईश्वर 
ले गया था मेरा भगवान् 
एक ख्वाब की दुनिया में 
सातवें आसमान के पार। 
----------------कमला सिंह 'ज़ीनत'  

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