Wednesday 28 August 2013

और मैं चुपचाप देखती रही

और मैं चुपचाप देखती रही 
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कल एक दोस्त से मिली 
मिली क्या ------कहूँ तो 
बातें की 
और उसका असली रूप देखा 
वैसे बड़ा ही प्यारा था 
बातें भी बड़ी प्यारी थी उसकी 
ऐसा लगा जैसे वो मुझ जैसा है 
वाकई ………. 
मेरी तरह शायद जिंदगी को करीब से देखा है 
बहुत अच्छा लगा 
लगा जैसे यूँ ………। 
मैं अकेली नहीं इस दुनियां में 
मुझ जैसे और भी हैं 
परन्तु मैं अभिमानी नहीं …. 
उसकी बातें तो प्यारी थी ………. 
लेकिन वो अभिमानी था 
उससे सच और झूठ का ज्ञान नहीं 
शायद ……… 
शायद अभिमान में अपने दोस्ती को,
तराजू में उससे तोलना नहीं आया 
उसने प्यार से जताए हक को भी गलत  समझा 
अच्छा हुआ।  
अच्छा हुआ.…………  मेरे कदम आगे बढ़ते और 
मैं चकनाचुर… । 
लेकिन संभल गयी मैं 
मेरे कदम बढ़ने से पहले जम से गए 
ठिठक गयी मैं …….  
ठिठक गयी उसके लगाये लांछन से 
हिम्मत ना थी की मैं 
आगे बढूँ दोस्ती में 
कदम तो मेरे पत्थर के हो गए जैसे 
और हो भी क्यों न 
ये रिश्ता बड़ा ही नाजुक होता है 
कच्चे  धागे की तरह 
खुदा की दी हुई बहुत बड़ी नेमत है ये 
लेकिन। ……………… 
ये सबके बस की बात नहीं 
दोस्ती कोई व्यापार नहीं 
दोस्ती कोई खिलवाड़ नहीं 
दोस्ती कोई सामान नहीं 
थोड़ी देर के लिए मैं टूटी तो सही 
पर 
असलियत जान गयी 
अपनी जगह जान गयी उसकी जिंदगी में 
वो चला गया 
मैं देखती हैरान सी देखती रही 
खड़ी रही स्तब्ध सी 
वो चला गया मेरी ज़ज्बातों को 
पैरों तले रौंदकर 
मैं ………
पथराई आँखों से देखती रही 
और वो 
मेरी नज़रों से ओझल हो गया 
हमेशा के लिए ………… 
-------------------कमला सिंह ज़ीनत 


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