Thursday 10 April 2014

मेरी ग़ज़ल संग्रह कि एक और ग़ज़ल 
हाज़िर है आपके खिदमत में 
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सारे सजदे अदा हो गए 
हम मुसल्सल दुआ हो गए 

उसकी रहमत के इक घूंट से 
हम मुकम्मल नशा हो गए 

शर्त रखते ही ऐसा हुआ 
सारे रिश्ते हवा हो गए

बेवफा उनके होने तलक
मुस्तकिल हम वफ़ा हो गए

मेरी राहत को आये थे वो
रफ्ता रफ्ता सजा हो गए

तेरे अरमान ज़ीनत कई
पल ही पल में अता हो गए
----कमला सिंह 'ज़ीनत'

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