Sunday 20 July 2014

-----------------ग़ज़ल--------------------- मुस्कुराता हुआ मंज़र रख दे सामने मेरे समुंदर रख दे या तो खुशियाँ निबाह कर मुझसे या तो फिर ला कोई ख़ंजर रख दे ज़ख़्म बाहर से हो अगर बेहतर ज़हर कुछ ज़ख़्म के अंदर रख दे इश्क़ का आसमान है ऊँचा खौ़फ ए परवाज़ हो तो पर रख दे तुझको महबूब है मैं जानती हूँ अपने हिस्से में मालो ज़र रख दे छोड़ रहने दे यूँ ही जी़नत को राह में मेरे दो पहर रख दे कमला सिंह जी़नत

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