Monday 28 July 2014

होकर आपने, क़द से बाहर, कोई धूल उडा़ता है
ऐसी सुरत, जब भी हो, तो होश मेरा खो जाता है
मेरे अंदर ज़ब्त बहुत है, सहने लायक सहती हूँ
उल्टी सीधी ही बातों पर, मुझको गुस्सा आता है

कमला सिंह 'ज़ीनत'

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