Friday 26 September 2014

एक अमृता और
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जी़नत ?
आज क्या लिखोगी ?
एक अमृता के साये से
एक जी़नत के साये के गुज़रन में
क्या खू़ब अंदाज़ है तेरे लिखने का
अमृता के साँचे में जी़नत का ढल जाना
यह कमाल बस तेरे ही पास है
तो फिर बताओ न
आज क्या है लिखने को तेरे मन में
मैं चाहती हूँ कि तू मेरी सुब्ह लिख
सुनहरा वक्त़ लिख
वो बहार लिख , वो खु़मार लिख
सारी की सारी अमृता लिख
और फिर आख़री लकीरों में
लिख दे मुकम्मल खु़द को तू
मुझे खुशी होती है जी़नत सच में
जब तुम लिखती हो अमृता को
जब तुम लिखती हो मेरे इमरोज़ को
जब तुम लिखती हो जी़नत को
जब तुम लिखती हो अपने........... को
----कमला सिंह 'ज़ीनत'

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