Sunday 17 May 2015

यह कविता नहीं है
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मुझे भी पक्षियों से लगाव है
मेरी भी इच्छा है उनकी सेवा करूं
तप रही है धरती
तप रही हैं हवाएं भी
प्यास से व्याकुल हो जाती हूँ मैं भी
मेरे अंदर सेवा भाव की इच्छा है
मैं चाहती हूँ कुछ पुन्य करूं
पिछले एक सप्ताह से मैं
रख कर आ आती हूँ दाना और पानी
छत पे बनी शेड के नीचे
बहुत दुखी हूँ मैं
न तो दाने से एक दाना कम हुआ है
और न पानी ही
छत से आसमान ताक रही हूँ
हर तरफ साँय साँय है
कोई परिंदा नहीं है
कोई पक्षी नहीं है आस पास
केवल लैंडिंग
और टेकऑफ करते
हवाई जहाज उड़ रहे हैं
प्यास और प्यासों के बीच
पक्षी कहाँ हैं
कहाँ हैं ,कहाँ हैं पक्षी ।

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