Sunday 1 May 2016

मेरी  एक और ग़ज़ल हाज़िर है 
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मेरे  मुँह  पर  ताला है 
इक मकड़ी का जाला है 

हाथ में मेरी मेहनत का 
रोशन एक  निवाला   है 

बिल्कुल थे खुद्दार बहुत 
जिन  हाथों  ने पाला  है 

सादेपन  ने  मुझको  ही 
हर  मुश्किल  में डाला है 

मैंने  अक्सर  देखा    है 
चाँद  के  रुख़ पे काला है 

नीम  अँधेरा  'ज़ीनत' में 
पर  हर सिम्त उजाला है 
--कमला सिंह 'ज़ीनत'

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