Wednesday 5 April 2017

कठिन है राह ये शाइस्तगी ज़रूरी है
जुनूने इश्क़ में पाकीज़गी ज़रूरी है
नज़र जो आये नज़र देखिये उसे जी भर
हर एक लम्हां मगर तिश्नगी ज़रूरी है
खुदा की ज़ात से या बंदगी किसी की हो
निभाना शर्त है वाबस्तगी ज़रूरी है
अंधेरा और बढ़ेगा यहाँ लम्हां-लम्हां
हर एक सिम्त अभी रौशनी ज़रूरी है
खुद अपनी ज़ात ही जब बोझ की सूरत लौटे
तो ऎसे हाल में फिर ख़ुदकुशी ज़रूरी है
कभी तो गमलों में पानी भी दिया कर 'ज़ीनत'
गुलों के वास्ते कुछ ताज़गी ज़रूरी है
----कमला सिंह 'ज़ीनत

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