ग़ज़ल हाज़िर है
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जो ज़बानो -ब्यान वाले हैं
बस वही दास्तान वाले हैं
बालों पर की ख़बर नहीं जिनको
पूछिए तो उड़ान वाले हैं
शैख़ शजरा दिखा के कहता है
हम ही बस आन बान वाले हैं
बोझ अपना भी जो उठा न सके
फ़क्र है खानदान वाले हैं
जो गरीबों का खून पीते थे
आज वह दरम्यान वाले हैं
'ज़ीनत' सुन रंगो-बू-जुदागाना
अपनी अपनी दूकान वाले हैं
--कमला सिंह 'ज़ीनत'
वाह ! बहुत ख़ूब सुन्दर पंक्तियाँ आभार "एकलव्य"
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